काल देव के आगमन के लिए प्रभु राम ने हनुमान जी को नागलोक भेजा
-धर्म-आध्यात्म-
रामभक्त हनुमान हमेशा ही अपने आराध्य देव भगवान श्री राम के समीप ही रहा करते थे और भगवान राम भी हनुमान जी को पुत्रवत प्रेम किया करते थे। हनुमान जी के कारण ही मृत्यु के देवता काल देव राम जी के पास आने से डरते थे।
भगवान राम ने त्रेतायुग मे मनुष्य के रूप में जन्म लिया था। इसी कारण से उनकी भी मृत्यु होनी निश्चित थी। जब भगवान राम का पृथ्वी लोक पर आने का उद्देश्य पूरा हो गया तो उन्होंने पृथ्वी लोक को छोड़ने का निश्चय किया। लेकिन काल देव की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वह राम जी को तब तक अपने साथ नहीं ले जा सकते थे, जब तक उनके साथ हनुमान जी हो। भगवान श्री राम यह बात जानते थे कि यदि उनके जाने की बात हनुमान जी को पता चल गई तो वह पूरी पृथ्वी को ही उथल-पुथल कर देंगे।
चूंकि हनुमान जी जैसा राम भक्त इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं है। इसलिए जिस दिन काल देव को अयोध्या आना था। उस दिन काल देव ने हनुमान जी को मुख्य द्वार से दूर रखने के भगवान राम को एक तरकीब बताया। श्री राम ने अपनी अंगूठी महल के फर्श में आई एक दरार में डाल दी और हनुमान जी को उसे बाहर निकालने का आदेश दिया। जिसके बाद हनुमान जी ने सूक्ष्म आकार ले लिया। जब हनुमान जी उस दरार के अंदर गए, तब उन्हें में समझ आया कि यह कोई दरार नहीं बल्कि एक सुंरग है जो नागलोक की ओर जाती है। वहां जाकर वह नागों के राजा वासुकी से मिले। तब वासुकी ने हनुमान जी से नागलोक आने का कारण पूछा। तब हनुमान जी ने बताया कि मेरे आराध्य प्रभु श्री राम की एक अंगूठी पृथ्वी से होते हुए नागलोक में आ गई है। उसे ही खोजते- खोजते मैं यहां पर आया हूं।
यह सुनकर वासुकी हनुमान जी को नागलोक के मध्य में ले गए। उन्होंने हनुमान जी को अंगूठियों का एक बड़ा से ढेर दिखाते हुए कहा कि आपको यहां पर प्रभु श्री राम की अंगूठी मिल जाएगी। लेकिन उस अंगूठी के ढेर को देखते ही हनुमान जी कुछ परेशान से हो गए और सोचने लगे की अंगूठियों के इस ढेर में से प्रभु श्री राम की अंगूठी खोजना रूई के ढेर में से सूईं खोजने के बराबर है। उसके बाद उन्होंने जैसे ही पहली अंगूठी उठाई वह प्रभु श्री राम की ही थी। उन्हें इस बात पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्हें अपने प्रभु श्री राम की अंगूठी पहले ही प्रयास में मिल गई। उन्हें और आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने दूसरी अंगूठी उठाई। उस पर भी श्री राम ही लिखा हुआ था। इस तरह उन्होंने देखा की सभी अंगूठियों पर श्री राम ही लिखा हुआ है। यह देखकर हनुमान जी पहले तो कुछ समझ ही नहीं पाए कि उनके साथ यह सब क्या हो रहा है। लेकिन इसे देखकर वासुकी मुस्कुराए और हनुमान जी से बोले पृथ्वी लोक एक ऐसा लोक है, जहां पर जो भी आता है, वहां पर उसे एक न एक दिन जाना ही पड़ता है।उसके वापस जाने का साधन कुछ भी हो सकता है।भगवान श्री राम भी एक दिन पृथ्वी लोक को छोड़कर विष्णु लोक अवश्य ही जाएंगे।
वासुकी की यह बात सुनकर हनुमान जी को यह बात समझ में आ गई कि उनका अंगूठी ढूंढने के लिए नागलोक आना यह सब प्रभु श्री राम की ही लीला थी। साथ ही उनका नागलोक में आना, उन्हें उनके कर्तव्य से भटकाना था। जिससे काल देव अयोध्या में प्रवेश कर सकें और श्री राम को उनके पृथ्वी लोक को छोड़कर जाने के लिए बता सकें। उन्होंने वासुकी से रोते हुए कहा कि अब जब मैं अयोध्या जाऊंगा तो मेरे प्रभु श्री राम मुझे नहीं मिलेंगे तो मैं अयोध्या में जाकर क्या करूंगा। जिसके बाद वह वापस अयोध्या कभी भी नहीं गए।
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