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गायत्री माता शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है।

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गायत्री माता शक्ति, ज्ञान, पवित्रता तथा सदाचार का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि गायत्री मां की आराधना करने से जीवन में सूख-समृद्धि, दया-भाव, आदर-भाव आदि की विभूति होती हैं। गायत्री देवी यह हिन्दू धर्म की एक देवी है। इसका संशोधन महर्षि विश्वामित्र द्वारा किया गया है ! गायत्री वह दैवी शक्ति है जिससे सम्बन्ध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण पृथक् पृथक् हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है। गायत्री से आत्मसम्बन्ध स्थापित करने वाले मनुष्य में निरन्तर एक ऐसी सूक्ष्म एवं चैतन्य विद्युत् धारा संचरण करने लगती है, जो प्रधानतः मन, बुद्धि, चित्त और अन्तःकरण पर अपना प्रभाव डालती है। बौद्धिक क्षेत्र के अनेकों कुविचारों, असत् संकल्पों, पतनोन्मुख दुर्गुणों का अन्धकार गायत्री रूपी दिव्य प्रकाश के उदय होने से हटने लगता है। यह प्रकाश जैसे- जैसे तीव्र होने लगता है, वैसे- वैसे अन्धकार का अन्त भी उसी क्रम से होता जाता है।

मनोभूमि को सुव्यवस्थित, स्वस्थ, सतोगुणी एवं सन्तुलित बनाने में गायत्री का चमत्कारी लाभ असंदिग्ध है और यह भी स्पष्ट है कि जिसकी मनोभूमि जितने अंशों में सुविकसित है, वह उसी अनुपात में सुखी रहेगा, क्योंकि विचारों से कार्य होते हैं और कार्यों के परिणाम सुख- दुःख के रूप में सामने आते हैं। जिसके विचार उत्तम हैं, वह उत्तम कार्य करेगा, जिसके कार्य उत्तम होंगे, उसके चरणों तले सुख- शान्ति लोटती रहेगी। गायत्री उपासना द्वारा साधकों को बड़े- बड़े लाभ प्राप्त होते हैं। हमारे परामर्श एवं पथ- प्रदर्शन में अब तक अनेकों व्यक्तियों ने गायत्री उपासना की है। उन्हें सांसारिक और आत्मिक जो आश्चर्यजनक लाभ हुए हैं, हमने अपनी आँखों देखे हैं। इसका कारण यही है कि उन्हें दैवी वरदान के रूप में सद्बुद्धि प्राप्त होती है और उसके प्रकाश में उन सब दुर्बलताओं, उलझनों, कठिनाइयों का हल निकल आता है, जो मनुष्य को दीन- हीन, दुःखी, दरिद्र, चिन्तातुर, कुमार्गगामी बनाती हैं। जैसे प्रकाश का न होना ही अन्धकार है, जैसे अन्धकार स्वतन्त्र रूप से कोई वस्तु नहीं है; इसी प्रकार सद्ज्ञान का न होना ही दुःख है, अन्यथा परमात्मा की इस पुण्य सृष्टि में दुःख का एक कण भी नहीं है। परमात्मा सत्- चित् स्वरूप है, उसकी रचना भी वैसी ही है। केवल मनुष्य अपनी आन्तरिक दुर्बलता के कारण, सद्ज्ञान के अभाव के कारण दुःखी रहता है, अन्यथा सुर दुर्लभ मानव शरीर ‘‘स्वर्गादपि गरीयसी’’ धरती माता पर दुःख का कोई कारण नहीं, यहाँ सर्वत्र, सर्वथा आनन्द ही आनन्द है।

सद्ज्ञान की उपासना का नाम ही गायत्री उपासना है। जो इस साधना के साधक हैं, उन्हें आत्मिक एवं सांसारिक सुखों की कमी नहीं रहती, ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास और दीर्घकालीन अनुभव है। — श्रीराम शर्मा आचार्य वेद कहते हैं- ज्ञान को। ज्ञान के चार भेद हैं- ऋक्, यजुः, साम और अथर्व। कल्याण, प्रभु- प्राप्ति, ईश्वरीय दर्शन, दिव्यत्व, आत्म- शान्ति, ब्रह्म- निर्वाण, धर्म- भावना, कर्तव्य पालन, प्रेम, तप, दया, उपकार, उदारता, सेवा आदि ऋक् के अन्तर्गत आते हैं। पराक्रम, पुरुषार्थ, साहस, वीरता, रक्षा, आक्रमण, नेतृत्व, यश, विजय, पद, प्रतिष्ठा, यह सब ‘यजु:’ के अन्तर्गत हैं। क्रीड़ा, विनोद, मनोरञ्जन, संगीत, कला, साहित्य, स्पर्श इन्द्रियों के स्थूल भोग तथा उन भोगों का चिन्तन, प्रिय कल्पना, खेल, गतिशीलता, रुचि, तृप्ति आदि को ‘साम’ के अन्तर्गत लिया जाता है। धन, वैभव, वस्तुओं का संग्रह, शास्त्र, औषधि, अन्न, वस्तु, धातु, गृह, वाहन आदि सुख- साधनों की सामग्रियाँ ‘अथर्व’ की परिधि में आती हैं।

           [ गायत्री माता जी की आरती  ]
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।

आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री।
दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री॥१॥

ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे।
भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥२॥

भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥३॥

कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥४॥

ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे॥५॥

स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥६॥

जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे॥७॥

स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥८॥

काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥९॥

तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता।
सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता॥१०॥

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥

कैसे करें गायत्री माता की सच्ची आरती ?
यह बात तो सब जानते ही है की संसार पंच महाभूतों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। 
आरती में ये पांच वस्तुएं (पंच महाभूत) रहते है : 
पृथ्वी की सुगंध—कपूर
जल की मधुर धारा—घी
अग्नि—दीपक की लौ
वायु—लौ का हिलना
आकाश—घण्टा, घण्टी, शंख, मृदंग आदि की ध्वनि
इस प्रकार सम्पूर्ण संसार से ही भगवान की आरती होती है।

           |||  इति शुभम् प्रभातम ... ॐ शांति ॐ  |||

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