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रामटेक मंदिर पर श्री राम की छवि दिखती है : वंदना सहाय 

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रामटेक मंदिर पर श्री राम की छवि दिखती है : वंदना सहाय 

जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 17 अक्टूबर ::

हमारा देश भारत एक सांस्कृतिक देश है, जिसकी सभ्यता प्राचीनतम है। यहाँ मंदिरों की बहुतायत है, जिनमें कई मंदिर सैकड़ों वर्षों से भी पुराने हैं। ऐसे ही मंदिरों में से एक है- रामटेक का भगवान राम का अद्भुत मंदिर।

महाराष्ट्र के नागपुर से करीब चालीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामटेक मंदिर रमणीक और ऊँची पहाड़ियों पर स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दु तीर्थ स्थान है, जो लगभग छः सौ साल पुराना है। इस मंदिर के विषय में ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने वनवास के दौरान माता सीता और भगवान लक्ष्मण के साथ इसी स्थान पर चार महीने बिताए थे। इसलिए उनके टिकने के स्थान को 'रामटेक' कहते हैं। इस बात का वर्णन पद्म पुराण में भी किया गया है।

इस मंदिर का निर्माण राजा रघु खोंले ने एक किले के रूप में करवाया था। इसलिए इसे गढ़ मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर कम किला ज्यादा लगता है। इस मंदिर की विशेषताओं की बात करें तो यह मंदिर सिर्फ पत्थरों से बना हैं, जो एक-दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। सैकड़ों साल पुराना मंदिर आज भी जैसे का तैसा है, इसे लोग प्रभु श्री राम की कृपा बताते हैं। मंदिर के निकट विशाल वाराह के आकार में कटा हुआ एक शैलखंड है। पूरब की ओर सूर्य नदी या सूर नदी बहती है। एक ऊँचा टीला भी यहाँ है, जिसे गुप्त कालीन बताया जाता है और कहा जाता है कि चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती ने यहाँ की यात्रा की थी। इसकी बात की पुष्टी रिद्धपुर के ताम्रपत्र से होती है।

मंदिर के परिसर में एक तालाब भी है, जिसे लेकर ऐसी मान्यता है कि इसका जल कभी कम या ज्यादा नहीं होता। हमेशा जल स्तर का सामान्य होना लोगों को विस्मय में डाल देता है। यह भी कहा जाता है कि जब आकाश में बिजली चमकती है तो मंदिर के शिखर पर ज्योति प्रकाशित होती है, जिसमें प्रभु श्री राम की छवि दिखाई देती है।

यही वह स्थान है, जहाँ भगवान राम ऋषि अगत्स्य से मिले थे। यहीं ऋषि अगत्स्य ने भगवान राम को शस्त्रों का ज्ञान दिया था। जब श्री राम जी ने यहाँ हर जगह हड्डियों का ढेर देखा, तो उन्होंने ऋषि अगत्स्य से इसके बारे में पूछा तो ऋषि अगत्स्य ने बताया कि यह उन ऋषियों की हड्डियाँ हैं, जो यहाँ पर पूजा किया करते थे। राक्षस उनकी पूजा और यज्ञ में विघ्न डाला करते थे। इस बात को जानने के बाद श्री रामचंद्र ने यह प्रतिज्ञा ली कि वे राक्षसों का विनाश करेंगे।

रावण के अत्याचारों के बारे में श्री रामचंद्र जी ने ऋषि अगत्स्य से यहीं पर सुना और उन्होंने उन्हें यहीं पर ब्रह्मास्त्र दिया, जिससे रावण का वध संभव हो पाया था।

यहीं पर महाकवि कालिदास ने महाकाव्य 'मेघदूत' और 'शकुन्तल' लिखे थे। 'मेघदूत' में वर्णित 'रामगिरि' यही है।
जनश्रुति के अनुसार श्री राम ने शंबूक वध यहीं किया था।

साल में दो बार यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। एक कार्तिक महीने के त्रिपुरी पूर्णिमा को और दूसरा रामनवमी के दिन, जिसे देखने देशभर से लोग आते हैं।

यह मनोरम स्थल शहर के भीड़-भाड़ से दूर यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को मानसिक शांति प्रदान करती है।
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