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जानें गायत्री मंत्र की महत्ता एवम व्यापकता

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[ दुनिया के सारे धर्म हैं, गायत्री में  ... सर्वधर्म की मूल आत्मा है , गायत्री मंत्र  ] 
   ( जानें गायत्री मंत्र की महत्ता एवम व्यापकता ) 

आलेख ✍️ :  मानसपुत्र संजय कुमार झा / व्हाट्सऐप संपर्क  @ 9679472555 , 9431003698 
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शुभ प्रभात, भक्त बंधुओं / मित्रों ! 
शुभकामनाए , 

गायत्री वह दैवी शक्ति है जिससे सम्बन्ध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण पृथक् पृथक् हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है l

|||  ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ  |||
[ हम उस अविनाशी ईश्वर का ध्यान करते है, जो भूलोक,अंतरिक्ष, और स्वर्ग लोकों का का उत्पन्न किया है,उस सृष्टीकर्ता, पापनाशक,अतिश्रेष्ठ देव को हम धारण करते है – वह (ईश्वर) हमें सद्बुद्धी दें एवम सत्कर्म में प्रेरित करे. ]

सनातन धर्म में गायत्री मंत्र का बहुत महत्व है।
यह एक बहुत दिव्य मंत्र है जिसका उल्लेख हमें वेदों औऱ पुराणों और सभी ग्रंथों में मिलता है। गायत्री मंत्र की महिमा अनमोल है, महापुरूषों ने गायत्री मंत्र का प्रतिदिन उच्चारण बहुत अच्छा बताया है। 24 अक्षरों का मंत्र सनातन धर्म में बहुत ही दिव्य है। वेद माता गायत्री का यह मंत्र बहुत ही कल्याणकारी है, इसके उच्चारण मात्र से ही हमारे मन में प्रसन्नता का भाव उभरने लगता है। 
वेदमाता गायत्री आदिशक्ति है। ज्ञान शक्ति रूप माता गायत्री का स्मरण सांसारिक जीवन की हर परेशानियों से बाहर आने और मनोरथ पूरे करने के लक्ष्य से बहुत अहमियत है। यही कारण है कि गायत्री के ध्यान और उपासना के लिए गायत्री मंत्र का जप बहुत ही असरदार माना गया है।

गायत्री मंत्र की महानता, शक्ति और प्रभाव अनंत है। वेद, पुराण, सभी धर्म शास्त्र, ऋषि-मुनि, गृहस्थ-वैरागी, स्त्री-पुरुष आदि समान रूप से गायत्री की महानता को स्वीकार करते हैं। आखिर ऐसा क्या रहस्य है इस चौबीस अक्षरों के छोटे से मंत्र में? गायत्री के 24 अक्षरों में अनंत ज्ञान भरा पड़ा है। जो ज्ञान गायत्री के गर्भ में छिपा है, उसे यदि मनुष्य अच्छी तरह से समझ ले और उसका अपने जीवन में व्यवहार करे, तो उसके लोक-परलोक दोनों सुख-शांति  से भर जाता है ! इन्हें पाकर कोई भी इंसान या जीव सर्वसमर्थ हो सकता है। योग साधना से इन्हें जाना जा सकता है, पहचाना जा सकता है। इन्हें सिद्ध करके यानि कि जाग्रत करके जीव संसार के समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है। जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाता है। जीव का ‘शरीर’ अन्न से, ‘प्राण’ तेज से, ‘मन’ नियंत्रण से, ‘ज्ञान’ विज्ञान से और कला से ‘आनन्द की श्रीवृद्धि होती है। गायत्री के पांच मुख इन्हीं तत्वों के प्रतीक हैं।

           [  दुनिया के सारे धर्म हैं, गायत्री में  ] 

जो धर्म प्रेम, मानवता और भाईचारे का संदेश देने के लिए बना था आज उसी के नाम पर हिंसा और कटुता बढ़ाई जा रही है। इसलिये आज एक ऐसे विश्व धर्म की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जो दिलों को जोडऩे वाला हो। हर धर्म में ऐसी बातें और प्रार्थनाएं हैं जो सभी धर्मों को रिप्रजेंट करती हैं। हिन्दुओं में गायत्री मंत्र के रूप में ऐसी ही प्रार्थना है, जो हर धर्म का सार है। तो आइये देखें:-

• हिन्दू – 
ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुख स्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दें।

• ईसाई – 
हे पिता, हमें परीक्षा में न डाल, परन्तु बुराई से बचा क्योंकि राज्य, पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।

• इस्लाम – 
हे अल्लाह, हम तेरी ही वन्दना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा, उन लोगों का मार्ग, जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।

• सिख – 
ओंकार (ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है वह सृष्टिकर्ता, समर्थ पुरुष, निर्भय, र्निवैर, जन्मरहित तथा स्वयंभू है । वह गुरु की कृपा से जाना जाता है।

• यहूदी – 
हे जेहोवा (परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर, मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।

• शिंतो – 
हे परमेश्वर, हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों । हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे में अभद्र बातों का अनुभव न हो।

• पारसी – 
वह परमगुरु (अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ऋत तथा सत्य के भंडार के कारण, राजा के समान महान् है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।

• दाओ (ताओ) – 
दाओ (ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है।

• जैन – 
अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार ।

• बौद्ध धर्म – 
मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।

• कनफ्यूशस – 
दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो, जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।

• बहाई – 
हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तुझे पहचानने तथा तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटों से तारनहार तथा स्व निर्भर करने वाले 

[  जय जय मां  ...  जय जय मां  ...  जय जय मां ]

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