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बिहार के सूर्य देव मन्दिर का इतिहास ,जाने सच

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यह सूर्य मंदिर अपनी विशिष्ट कलात्मक भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए भी जाना जाता है। यह औरंगाबाद से करीब 18 किलोमिटर दूर है और सौ फीट ऊंचा है। डेढ़ लाख वर्ष पुराना यह सूर्य मंदिर काले और भूरे पत्थरों से बना हुआ है। यह सूर्य मंदिर ओड़िशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर से मेल खाता है। मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख पर ब्राह्मी लिपि में एक श्लोक लिखा है, जिसके मुताबिक इस मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष पहले त्रेता युग में हुआ था। शिलालेख से पता चलता है कि अब इस पौराणिक मंदिर के निर्माण को 1 लाख 50 हजार 19 वर्ष पूरे हो गए हैं।

देव मंदिर 

 इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था। यह देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है। इस कहा जाता है कि देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया.

विश्वकर्मा ने बनाया था मंदिर

यूं तो देश में भगवान सूर्य के गई प्रख्यात मंदिर है, सभी का अपना महत्व हैं, लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्य मंदिर का अपना इतिहास है। मंदिर को लेकर कई किंवदंतियां सुनने में आती है। कहते हैं इस सूर्य मंदिर

अयोध्या के निर्वासित राजा ने बनवाया 

कथा है कि सतयुग में अयोध्या के निर्वासित राजा ऐल एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने गए थे। वे किसी ऋषि के श्रापवश श्वेत कुष्ठ से पीड़ित थे। वे देव के वन में राह भटक गए। राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखाई दिया जिसके किनारे वह पानी पीने गए और अंजुरी में जल भर कर पीया जिससे उनका श्वेत कुष्ठ ठीक हो गया। उन्होंने बताया कि वही सरोवर आज सूर्यकुंड के रूप में जाना जाता है। उसी रात जब राजा रात में सोए हुए थे तो उन्हें सपना आया कि जिस गड्ढे में उनका कुष्ठ ठीक हुआ था, उसमें ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की तीन मूर्ति हैं। इसके बाद राजा ने मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करके स्थापना की आैर मंदिर बनवाया। 

तीन स्वरूपों में भगवान सूर्य 

देव सूर्य मंदिर में छठ करने का अलग महत्व है। यहां भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विराजमान है। देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (प्रात:) सूर्य, मध्याचल (दोपहर) सूर्य, और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में विद्यमान है। पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में विराजमान है। मंदिर में स्थापित प्रतिमा काफी प्राचीन है। मंदिर का सर्वाधिक आकर्षक भाग गर्भगृह के ऊपर बना गुंबद है जिस पर चढ़ पाना असंभव है। गर्भगृह के मुख्य द्वार पर बायीं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा है और दायीं ओर भगवान शंकर के गोद में बैठी प्रतिमा है। ऐसी प्रतिमा सूर्य के अन्य मंदिरों में देखने को नहीं मिलती है। गर्भ गृह में रथ पर बैठे भगवान सूर्य की भी एक अदभुत प्रतिमा है।

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