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बिना वसीयत की संपत्ति पर बेटी का अधिकार ज्यादा : सुप्रीम कोर्ट

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-हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिंदू महिलाओं के अधिकारों के संबंध में फैसला

    नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति की बिना वसीयत के मौत हो जाने पर भी उसकी संपत्ति पर उसकी बेटी का अधिकार बनता है। ऐसे मामलों में संपत्ति पर बेटी का अधिकार दूसरे उत्तराधिकारियों से ज्यादा होगा। यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिंदू महिलाओं और विधवाओं के अधिकारों के संबंध में था।
     न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की बेंच के सामने सवाल था कि अगर मृतक की संपत्ति का कोई और कानूनी उत्तराधिकारी न हो और उसने अपनी वसीयत न बनवाई हो तो संपत्ति पर बेटी का अधिकार होगा या नहीं? बेंच ने अपने फैसले में कहा की अगर ऐसे व्यक्ति की संपत्ति "खुद अर्जित की हुई है या पारिवारिक संपत्ति में विभाजन के बाद प्राप्त की हुई है तो वो उत्तराधिकार के नियमों के तहत सौंपी जाएगी और ऐसे व्यक्ति की बेटी का उस संपत्ति पर अधिकार दूसरे उत्तराधिकारियों से पहले होगा" 
   यह मुकदमा इसलिए भी दिलचस्प था क्योंकि संबंधित व्यक्ति मरप्पा गौंदर की मृत्यु 1949 में हो गई थी जब हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम नहीं बना था, अधिनियम 1956 में बना। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि फैसला ऐसे मामलों पर भी लागू होगा जिनमें संबंधित व्यक्ति की मृत्यु अधिनियम के बनने से पहले हो गई हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिनियम का उद्देश्य हिंदू कानून को संहिताबद्ध कर यह स्थापित करना है कि संपत्ति के अधिकार के सवाल पर पुरुषों और महिलाओं में पूरी तरह से बराबरी है और महिला के भी पूर्ण अधिकार हैं। 
  सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह भी समझाया कि अगर कोई हिंदू महिला बिना वसीयत के मर जाती है तो ऐसे मामलों में क्या होना चाहिए। कोर्ट के मुताबिक ऐसे मामलों में महिला के पिता या माता से उसे प्राप्त हुई संपत्ति उसके पिता के उत्तराधिकारियों के पास वापस चली जाएगी, जबकि महिला के पति या ससुर से उसे प्राप्त हुई संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों के पास चली जाएगी। अगर मृत महिला का पति या कोई भी संतान जीवित है तो उसकी सारी संपत्ति उसके पति या उसकी संतान के पास चली जाएगी। यह फैसला संपत्ति में महिलाओं के अधिकार के संबंध में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
   फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को लेकर कई बातें स्पष्ट की गई हैं। विशेष रूप से यह कि अधिनियम 1956 से पहले के मामलों पर भी लागू होगा। 1956 में अधिनियम के आने से पहले हिंदू महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता था। इस फैसले के बाद संभव है कि 1956 से पहले के कई संपत्ति विभाजन के मामलों पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है और अदालतों में और मुकदमे आ सकते हैं। लेकिन उम्मीद है कि इन सभी मामलों में इस मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया यह फैसला ऐसे विवादों में सही राह दिखाएगा।

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