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2016 के 7 नवंबर की शाम अभी ठंड से बोझिल हो ही रही थी कि प्रधानमंत्री ने ,

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2016 के 7 नवंबर की शाम अभी ठंड से बोझिल हो ही रही थी कि प्रधानमंत्री ने पूरे देश को सकते में डालते हुए 8 नवंबर से नोटबंदी की घोषणा कर दी। देश के एक-एक आदमी को हिला देने वाली इस अतुकांत घोषणा का तार्किकीकरण करते हुए सरकार और अख़बार-टीवी वाले समझाने में लग गए कि इससे कलाधन की समाप्ति होगी और आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। दंभ के अतिशय उद्रेक में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी से अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की मुनादी करते हुए और महज़ 50 दिनों का समय माँगते हुए यह भी कह दिया कि “यदि 30 दिसंबर के बाद कोई कमी रह जाए, कोई मेरी गलती निकल जाए, कोई मेरा इरादा ग़लत निकल जाए तो आप जिस चौराहे पर मुझे खड़ा करेंगे, मैं खड़ा होकर……. देश जो सजा करेगा, वो सजा भुगतने को तैयार हूँ।“ उन्होंने लोगों की खीज को कम करने और नोटबंदी के फ़ैसले में विश्वास दिलाने के लिए कुछ ऐसी भाषा का भी प्रयोग किया, जैसा कि गली में किसी मकान की दीवार की आड़ में जुआ खेलने वाले लड़के अक्सर करते हैं। लेकिन आज कोई भी, न तो सरकार और न ही मीडिया, उस ‘सरप्राइज़ इवेंट’ का कोई लाभ बता सकने में समर्थ है, जबकि आम आदमी की अफ़रा-तफरी और अर्थव्यवस्था की तबाही के मंजर की सिहरन आज भी महसूस की जाती है। वस्तुतः वह प्रधानमंत्री का शक्ति-परीक्षण था, सरकार के भीतर और जनता में भी, जिसमें वे सफल हो रहे है।
प्रधानमंत्री किसी प्रक्रिया को इवेंट बना देना और फिर खुद और अपनी तमाम टीम को उस उस इवेंट के प्रचार में लगा देना खूब जानते हैं। नोटबंदी की घटना को बीते अभी छह महीने भी नहीं हुए थे, सर्दी की चादर उतार करके गर्मी अभी गर्म होने के लिए सुगबुगा ही रही थी कि 31 मार्च, 2017 की आधी रात में संसद के ऐतिहासिक सेंट्रल हॉल में, रात के 12 बजे का घंटा बजते ही, विपक्ष के विरोध और बहिष्कार के बावजूद, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने एक साथ बटन दबाकर पूरे देश में जीएसटी को भी लागू कर दिया। यह वही हॉल है, जहाँ 14 अगस्त, 1947 को आजादी की घोषणा हुई थी, 1949 में संविधान को स्वीकार किया गया था और जहाँ 1997 में स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगाँठ मनायी गयी थी। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि “यह ऐतिहासिक क्षण है। आज 14 साल लंबी यात्रा का समापन होता है।“ अर्थात् इसे बहुत सोच-समझकर लाया गया है। यह भी ‘ब्रेन वाश’ करने जैसा ही वक्तव्य था। लेकिन प्रधानमंत्री ने फिर इसे ‘कालाधन’ और भ्रष्टाचार’ की उन भावनाओं से जोड़ दिया, आम लोगों के मन में जिसके चलते पहले से क्षोभ व्याप्त है। उन्होंने कहा – “ये सिर्फ़ उनकी सरकार नहीं, बल्कि सभी की साझी विरासत है। आपको आज से अनगिनत टैक्स से जो आजादी मिली है, वो सभी की मेहनत और सोच का परिणाम है।“ इस उद्बोधन और इसके बाद अनगिनत बार स्वयं प्रधानमंत्री, उनके नेताओं और मीडिया के द्वारा जीएसटी लागू किए जाने को इतना अतिरंजित बनाकर कहा गया, मानो इसका लागू होना ही देश की दूसरी आजादी हो विरोध लगता रहा हो ,जनता एक बेजान  पेंडुलम बन कर रह गया हो ,आखिर इसका जिम्मेवारी कौन l

ऐसा क्यों किया गया?

जीएसटी लागू किए जाने की प्रक्रिया में तीन बातें हमारा ध्यानाकर्षण करती हैं। पहली यह कि इसको लॉंच करने के लिए भव्य समारोह का आयोजन किया गया। यह कर-संग्रह की प्रक्रिया में बदलाव भर था। इसके लिए समारोह की कोई आवश्यकता नहीं थी। परंतु ऐसा किया गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि लोगों के मन में समारोह की भव्यता से किसी बड़ी परिघटना की धारणा बनती है। लोग जीएसटी लागू किए जाने को ऐतिहासिक रूप से परिवर्तनकारी घटना के रूप में स्वीकार करें, इसलिए इसे भव्य समारोह के द्वारा लॉंच किया गया। दूसरा यह कि सेंट्रल हॉल और आधी रात का भी अपना राजनीतिक संदेश था। उसी हॉल में आजादी की घोषणा हुई थी और घोषणा का समय भी वही था। अर्थात् इसे आजादी के साथ जोड़ने और आजादी की भावनाओं के साथ सत्तासीन राजनीतिक दल को भी जोड़ने की कोशिश की गयी, क्योंकि उस राजनीतिक दल पर आजादी के विरोध का आरोप लगता आख़िर उस जीएसटी में है क्या, जिसे इतने शोर-शराबे के साथ दूसरी आजादी के रूप में पेश किया गया?

वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Service Tax) को संक्षेप में जीएसटी कहा गया। इसके लागू होने के पहले चुंगी, सेंट्रल टैक्स, सेल्स टैक्स, वैट, एंट्री टैक्स, टर्न ओवर टैक्स आदि सैकड़ों प्रकार के केंद्र, राज्य एवं स्थानीय टैक्स व्यापारियों और लेन-देन करने वालों को देने पड़ते थे। इन सैकड़ों प्रकार के करों के बदले वर्ष 2016 में 101वें संविधान संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 246 में A जोड़कर ‘वस्तु एवं सेवा कर’ को अधिनियमित किया गया और 1 अप्रैल, 2017 को उक्त समारोह में इसे लागू किया गया। इसमें सारे करों को समेकित करके केवल चार प्रकार श्रेणी बनायी गयी। एक श्रेणी है सीजीएसटी (Central Goods and Service Tax)। इस श्रेणी में केंद्र को दिया जाने वाला कर है। दूसरी श्रेणी है एसजीएसटी (State Goods and Service Tax)। इस श्रेणी में राज्यों को दिए जाने वाले करों को रखा गया। तीसरा है आईजीएसटी (Integrated Goods and Service Tax)। सीजीएसटी और एसजीएसटी के समेकित रूप को आईजीएसटी कहते हैं, जिसमें कर का संग्रह केंद्र करता है और बाद में राज्य को उसका हिस्सा सौंपता है। जीएसटी की चौथी श्रेणी यूजीएसटी है, जो केंद्र शासित विरोध लगता रहा हो ,जनता एक बेजान  पेंडुलम बन कर रह गया हो ,आखिर इसका जिम्मेवारी कौन RDNEWS की खास पहल ।

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